उसका कसम खुदा की मुकद् दर बदल गया ।।
मेरे रसूल ए पाक के तलवों को चुम कर ।
पत्थर ज़मीं पे मोम की सूरत पिघल गया ।।
मुश्किल में पड़ गई है मेरी मुश्किले सभी ।
मुश्किल कुशा का नाम जो मुँह से निकल गया ।।
मेने तो सिर्फ मसलक ए अहमद रज़ा कहा ।
सुनकर वहाबियत का जनाज़ा निकल गया ।।
ख्वाजा पिया की चश्में इनायत तो देखिये ।
मुझ जैसा खोटा सिक्का ज़माने में चल गया ।।
सज्जाद की ज़बान से नाते रसूल को ।
सुनकर नबी का चाहने वाला मचल गया ।।
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Shukriya janab