Monday, 30 March 2020

Jo Bhi Nabi ke ishq (जो भी नबी के इश्क) | Sajjad Nizami | Naat Layrics

जो भी नबी के इश्क के सांचे में ढाल गया ।
उसका कसम खुदा की मुकद् दर बदल गया ।।

मेरे रसूल ए पाक के तलवों को चुम कर ।
पत्थर ज़मीं पे मोम की सूरत पिघल गया ।।

मुश्किल में पड़ गई है मेरी मुश्किले सभी ।
मुश्किल कुशा का नाम जो मुँह से निकल गया ।।

मेने तो सिर्फ मसलक ए अहमद रज़ा कहा ।
सुनकर वहाबियत का जनाज़ा निकल गया ।।

ख्वाजा पिया की चश्में इनायत तो देखिये ।
मुझ जैसा खोटा सिक्का ज़माने में चल गया ।।

सज्जाद की ज़बान से नाते रसूल को  ।
सुनकर नबी का चाहने वाला मचल गया ।।

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